Yoshinori Ohsumi |
हम जानते हैं कि हमारे शरीर
को क्रियाशील रहने के लिए ग्लूकोज़ की आवश्यकता होती है। जब भोजन हज़म होता है तो वो
ग्लूकोज़ (Glucose) में तबदील हो कर खून में आता है। जब खून में ग्लूकोज़ समाप्त हो जाता है तो
इस की पूर्ति यकृत (Liver — लिवर/जिगर) व मांसपेशियों (Muscles) में संग्रहित ग्लाइकोजन (Glycogen) से होती है। जब
ग्लाइकोजन भी समाप्त हो जाता है तो शरीर में संग्रहित वसा (Fat) पिघलनी शुरू हो जाती है और
इस क्रियाशीलता को जारी रखती है और इस के बाद प्रोटीन (Protein) का इस्तेमाल शुरू हो जाता
है। हम जानते हैं कि हमारा शरीर बहुत सारी छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिल कर बना
हुआ है। कोशिकाओं के अंदर भी बहुत सारे भाग होते हैं जिन्हें सेल-और्गेनेल्ल
(Cell Organelle — कोशिका-अंगक) कहा जाता है। प्रत्येक सेल-और्गेनेल्ल का अपना एक विशेष कार्य होता
है। जैसे ‘राइबोसोम’ (Ribosomes) प्रोटीन बनाते हैं। ‘गॉल्जी काय’ (Golgi Bodies) प्रोटीन व वसा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले कर जाते हैं। इसी तरह से
एक बहुत ही महत्वपूर्ण और्गेनेल्ल है ‘लाइसोसोम’ (Lysosome) जिस का काम खराब अथवा अपनी आयु पूरी कर चुके सेल-और्गेनेल्ल को खाना होता
है। इस के अतिरिक्त इस का काम सेल के अंदर जमा फालतू तत्त्व,
जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकते है, को खा कर हज़म करना होता
है, जिसके फलस्वरूप नए सेल-और्गेनेल्ल का निर्माण होता है।
सब से उत्तम औषधि
आराम
व उपवास है।
– बेंजामिन
फ्रेंकलिन (महान
वैज्ञानिक, खोजी व लेखक) |
उपवास सब से महान
इलाज
है – अपने अंदर मौजूद डॉक्टर।
– पैरासेलसस (आधुनिक चिकित्सा
विज्ञान का पिता) |
बीमारी के दौरान भोजन
करना, बीमारी को खुराक
देने के समान है।
– हिप्पोक्रेट्स (आधुनिक चिकित्सा
विज्ञान का पिता) |
मैं अपनी शारीरिक
व मानसिक
निपुणता को बढ़ाने के लिए
उपवास करता हूँ।
–
प्लेटो (महान दार्शनिक)
|
एक सच्चा उपवास शरीर, मन
व आत्मा को
शुद्ध करता है।
–
महात्मा गांधी (राष्ट्रपिता)
|